भगवान शिव को समर्पित, उदयपुर के 7 प्रसिद्ध मंदिर
एकलिंगजी मंदिर
एकलिंगजी मंदिर उदयपुर जिले के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण 734 ईस्वी में उदयपुर के शासक महाराणाओं में से एक बप्पा रावल द्वारा किया गया था, जिन्हें श्री एकलिंगजी का प्रतिनिधि माना जाता है। पिरामिडनुमा छत और खूबसूरती से तराशी गई मीनारों के साथ दो मंजिला मंदिर को इसके निर्माण के बाद से कई बार पुनर्निर्मित और विस्तारित किया गया है। मुख्य मंदिर में काले पत्थर में पांच मुखी शिवलिंग है, जिसकी स्थापना महाराणा रायमलजी की गई थी। इस भव्य मंदिर का मुख्य आकर्षण 50 फीट ऊंचा शिखर है।
महाकालेश्वर मंदिर
महाकालेश्वर मंदिर उदयपुर के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह फतेह सागर झील के पास, पन्ना विलास के सामने एक शानदार बैकग्रॉउंड के साथ स्थित है। मंदिर भगवान शिव (महाकाल) को समर्पित है और माना जाता है कि यह 900 वर्ष से अधिक पुराना है। लोककथाओं के अनुसार, लोकप्रिय संत और भगवान शिव भक्त गुरु गोरखनाथ ने इस धार्मिक स्थल पर पूजा की थी। इस खूबसूरत नक्काशीदार मंदिर के मुख्य मंदिर में काले पत्थर का शिवलिंग है। मंदिर में प्रतिदिन आरती की जाती है, लेकिन रुद्राभिषेक आरती मुख्य आकर्षण है, जो बड़ी संख्या में भक्तों को आकर्षित करती है। परिसर के भीतर अन्य देवी-देवताओं को समर्पित कई अन्य छोटे मंदिर भी हैं।
अमरख महादेव
उदयपुर शहर से 8-10 किमी दूर अरावली पर्वतमाला की चिरवा की पहाड़ियों की तलाई में स्थित है “अमरख महादेव” का मंदिर। उदयपुर से नाथद्वारा की और जाते समय चिरवा की घाटी चढ़ते समय बायें हाथ की और है इस मंदिर तक जाने का रास्ता हाईवे से लगभग 2 किमी अंदर की और स्थित है । यह मंदिर, 2 किमी की घुमावदार रोड और सुरम्य पहाड़ियां आपका मनमोह लेगी । यहाँ स्थित है माँ गंगा कुण्डकहाँ जाता है भीषण से भीषण काल के समय में भी इस कुण्ड का पानी कभी सुखा नहीं है। माँ गंगा कुण्ड के ठीक सामने छोटी पहाड़ी पर बिराजमान है बाबा अमरख महादेव पास में ही दूसरे मंदिर में माँ शक्ति भगवन गणेश व कार्तिकेय के साथ बिराजमान है। मुल मंदिर के पास में ही एक विश्राम भवन है उसी पौराणिक काल में निर्मितमंदिर में आप भगवान अमरख महादेव के चारों दिशाओ में से दर्शन कर सकते है मंदिर में चारों दिशाओ में दरवाजे बने हुए है । यह मंदिर लगभग 2500 वर्षो से भी ज्यादा पुराना है इस मंदिर को देख कर इसे बनाने वाले की वास्तुकला की प्रशंसा करने से आप खुद को रोक नहीं पायेंगे ।
परशुराम महादेव
अरावली की सुरम्य पहाड़ियों में परशुराम महादेव गुफा मंदिर का निर्माण स्वयं परशुराम ने अपनी कुल्हाड़ी से चट्टान को काटकर किया था। इस गुफा मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको 500 सीढ़ियां तय करनी पड़ती हैं। इस गुफा मंदिर के अंदर एक स्व-भौगोलिक स्थान है जहां विष्णु के छठे अवतार परशुराम ने कई वर्षों तक भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। तपस्या के बल पर उन्हें भगवान शिव से धनुष, अक्षय तुम्र और दिव्य छत्र प्राप्त हुए थे। पूरी गुफा एक ही चट्टान में बनी हुई है। उपरोक्त पैटर्न गाय की पेटी जैसा है। लिंग के ठीक ऊपर प्राकृतिक स्व-भौगोलिक गुफ़ा बना हुआ है, जिससे शिवलिंग पर निरंतर प्राकृतिक जलन होती रहती है। इस गुफा में एक चट्टान पर राक्षस की आकृति बनी हुई है। उसके मुक्कों से परशुराम घायल हो गये। इस स्थान से जुड़ी एक मान्यता के अनुसार, भगवान बद्रीनाथ का कपाट वही व्यक्ति खोल सकता है, जिसने परशुराम महादेव के दर्शन किए हों। मंदिर में गुफा के शिवलिंग में एक छेद है, जिसके बारे में मान्यता है कि इस छेद में दूध दुहने से भी नहीं गिरता, भले ही इसमें सैकड़ों पानी क्यों न भर जाएं, इसमें शामिल हो जाता है। इसी स्थान पर परशुराम ने दानिर को शिक्षा दी थी।
मृदेश्वर महादेव
मेनार में ब्रह्म सागर तालाब की पाल पर 68 फीट की विशाल मृदेश्वर महादेव की प्रतिमा स्थापित है। ये शिव प्रतिमा उदयपुर क्षेत्र ही नहीं बल्कि पूरे मेनार के लिए प्रमुख आस्था का केंद्र है। शिव के सम्मुख विशाल तालाब है । ग्रामीणों का मानना है कि जब से यह शिव प्रतिमा बनी है तब से यह तालाब कभी खाली नहीं हुआ है। इस विशाल शिवप्रतिमा के निर्माण का सपना देखा मेनार के समाज सेवी प्रभु लाल जोशी ने और गांव के बुज़ुर्गों व युवाओं के प्रयासों व सहयोग से 2008 में साकार हुआ।
कमलनाथ महादेव
कमलनाथ महादेव यहां रावण ने की थी पूजा। झाड़ोल का प्रमुख कमलनाथ महोदव मंदिर आवरगढ़ की पहाड़ी पर स्थित है और इस मन्दिर की कई लोक मान्यताएं हैं। किंवदंती के अनुसार यहां त्रेतायुग में लंकापति रावण ने स्थापित शिव प्रतिमा को प्रसन्न करने के लिए कमल पुष्प अर्पित किए थे । महादेव ने एक कमल पुष्प चुरा लिया था बाद में रावण ने अपने कमलनयन आंख रूपी पुष्प सहित पूरे 108 पुष्प मंत्रोच्चारण के साथ चढ़ाए तो महादेव रावण की पूजा से प्रसन्न हुए । बताते हैं कि उसी दिन से इस शिवधाम का नाम कमलनाथ महादेव नाम से विख्यात हुआ।
गुप्तेश्वर महादेव
तितरड़ी स्थित गुप्तेश्वर महादेव मंदिर पहाड़ी पर स्थित है। यहां महादेव एक गुफा में विराजमान हैं और उनके दर्शन करने के लिए भक्तों को भी उस गुफा में होकर जाना पड़ता है। शायद यही कारण है कि इसे ‘उदयपुर का अमरनाथ’ कहा जाने लगा। कहा जाता है कि गुरू बृजबिहारी बन ने गुप्तेश्वर महादेव की पहाड़ी के अंदर प्राकृतिक गुफा में तपस्या की थी और उन्हें ही यहां शिवलिंग होने का सपना आया था। तब इन पहाडिय़ों की गुफा में खोज करने पर उन्हें यहां शिवलिंग मिला और उन्होंने यहीं तपस्या शुरू की। इसके बाद यह मंदिर गुफा में होने के कारण गुप्तेश्वर महादेव और धीरे-धीरे उदयपुर के अमरनाथ के नाम से प्रसिद्ध हो गया।