पाकिस्तानी सेना के दिल में बसता है जैसलमेर का घोटूवां:ऐसे लड्डू जो एक महीने तक खराब नहीं होते, 10 करोड़ से ज्यादा का सालाना कारोबार
भारत-पाकिस्तान सीमा से सटे जैसलमेर के थार में अक्सर तोप गोलों और धमाकों की गूंज उठती रहती है, लेकिन यहां का एक खास जायका ऐसा है जिसकी महक बॉर्डर के उस पार बैठे दुश्मन सैनिकों को भी दीवाना बना देती है। इसके स्वाद ने भारत ही नहीं पाकिस्तान के लोगों को भी बांध रखा है। बॉर्डर पर जब भी फ्लैग मीटिंग या दीवाली, होली पर मिठाई का आदान-प्रदान होता है तो खासतौर पर जैसलमेर का घोटूवां ही दिया जाता है। ये ऐसी मिठाई है जो भारत में सिर्फ जैसलमेर में बनती है। राजस्थानी जायका की इस कड़ी में आपको ले चलते हैं इसके बेहतरीन स्वाद के सफर पर…
घोटूवां का इतिहास
जैसलमेर में 1939 में पहली बार मिठाई की दुकान खुली जहां घोटूवां बनाया जाता था। आज यहां करीब 50 स्वीट शॉप्स में घोटूवां बनता है। यह मिठाई भारत-पाकिस्तान के विभाजन से पहले भी यहां बनती रही है, लेकिन जैसलमेर में इसकी शुरुआत राणमल भाटिया ने की थी। आज भाटिया परिवार की 10वीं पीढ़ी भी यही काम कर रही है।
मनोज भाटिया बताते हैं कि उनके पड़दादा राणमल भाटिया के बाद दादा धनराज भाटिया ने इस कारोबार को आगे बढ़ाया। उनके दादा और पड़दादा के नाम से धनराज राणमल घोटूवां का ब्रांड पूरी दुनिया में मशहूर है। उनके दो बेटे हैं, जिनमे से एक सीए है और एक ने एमबीए किया है, लेकिन दोनों अपना पुश्तैनी काम संभाल रहे हैं। हम चाहते हैं कि आगे आने वाली पीढ़ियां भी यही काम करे।
जैसलमेर के इतिहासकार नंदकिशोर शर्मा बताते हैं कि ये जैसलमेर कि प्रसिद्ध ब्रांड मिठाई है जो केवल यहीं बनती है। इसके पीछे यहां का क्लाइमेट भी एक बड़ी वजह है। घोटूवां एक महीने तक खराब नहीं होता। इसी खासियत की वजह से कभी सिल्क रूट में रहे थार रीजन में सफर के दौरान लोग इसे साथ ले जाते थे। विभाजन के बाद सिंध के कई हलवाई जैसलमेर आकर बसे, उन्ही में से धनराज राणमल भाटिया का परिवार भी है। आज भी इसका स्वाद भारत से अलग हुए पाकिस्तान के सिंध में बसे लोगों की जुबान पर भी है।
कड़ी मेहनत से बनती है घोटूवां मिठाई
मनोज भाटिया बताते हैं कि हाथों में मूसल लेकर मूसली में घोटकर बनाने की वजह से इसका नाम घोटूवां पड़ा। इसे बनाने में शक्कर, घी, बेसन, इलायची व केसर का उपयोग होता है। सबसे पहले शक्कर की चाशनी बनाकर उसका गाढ़ा पेस्ट बनाया जाता है। इसमें केसर मिलाते हैं फिर बेसन का घोल बनाकर बूंदी और शक्कर के पेस्ट के साथ मिक्स किया जाता है। सब मिक्स करने के बाद उसमे घी मिलाया जाता है। घी मिलाने के बाद हाथों से मूसल कि मदद से कूटा जाता है घोटा जाता है। अब चूंकि हाथों से कूटने वाले कम हैं इसलिए स्पेशल मशीनों की मदद ली जाती है। करीब एक घंटे तक कूटने के बाद कारीगर इसके लड्डू बनाकर पैकिंग करते हैं।
जैसलमेर में है 10 करोड़ का कारोबार
घोटूवां की डिमांड इतनी है कि इसकी कम से कम 50 दुकानें अकेले जैसलमेर में है। यहां होने वाली हर आम से लेकर रॉयल वेडिंग में इसकी डिमांड रहती है। बाजार में इस मिठाई को 340 रुपए किलो के हिसाब से बेचते हैं। इसका सालाना कारोबार करीब 10 करोड़ से भी अधिक है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 70 व्यापारी और करीब 500 से ज्यादा कारीगर इस रोजगार से जुड़े हैं। मनोज भाटिया बताते हैं कि पहले इसे हाथों से घोटा जाता था लेकिन आजकल ऐसे कारीगर नहीं मिलते। इसलिए घोटूवा बनाने के लिए विशेष मशीनें मंगवाई गई हैं, जिससे यह काम आसानी से हो जाता है।
दुनिया भर में जाती है मिठाई
जैसलमेर की प्रसिद्ध मिठाई घोटूवां देशभर में पसंद की जाती है। जैसलमेर के लोग जो देश के अलग-अलग शहरों में रहते है वे ऑर्डर पर मंगवाते हैं। ऑनलाइन ऑर्डर भी खूब आते हैं जिनकी पूर्ति करते हैं। जैसलमेर आने वाले देशी-विदेशी टूरिस्ट भी इसे अपने साथ ले जाते हैं।
पाकिस्तानी रेंजर चाव से खाते हैं घोटूवां
जैसलमेर चूंकि बॉर्डर इलाका है और पाकिस्तान की सीमा से लगता है, इसलिए यहां भारत-पाकिस्तान के बीच फ्लैग मीटिंग होती रहती है। साथ ही सरहद पर त्यौहार के मौके पर दोनों देशों में मिठाइयों का आदान प्रदान होता है। मिठाइयों के आदान प्रदान में भारतीय रेंजर्स पाकिस्तानी रेंजर को घोटूवां खिलाकर मुंह मीठा करवाते हैं। जैसलमेर का घोटूवां दोनों देशों के रिश्तों में तल्खियों के बावजूद कुछ पल के लिए मिठास घोल देता है।