उदयपुर का ट्रेन वाला स्कूल:बच्चों को आकर्षित करने के लिए ट्रेन की तरफ पेंट कराया, प्रिंसिपल का रूम बना इंजन, बच्चों के क्लासरूम बने डिब्बे, प्राइमरी में एडमिशन दोगुने

डिब्बों में बैठकर पढ़ाई करते बच्चे और इंजन में बैठकर प्रिंसिपल और स्टॉफ स्कूल की ट्रेन को हर रोज पटरी पर दौड़ाते हुए शिक्षा के सफर पर निकलते हैं। ऐसा ही कुछ नजारा है उदयपुर के भींडर के धारता गांव के सरकारी स्कूल का। यहां के सरकारी स्कूल की बिल्डिंग बच्चों के लिए ट्रेन की तरह पेंट करवा दिया गया। यह पेंटिंग इस तरह करवाई गई कि स्कूल अब एक ट्रेन की तरह नजर आता है। जिसका इंजन प्रिंसिपल का रूम है। साथ में क्लासेज के रूप में डिब्बे जुड़े हैं। खास बात यह है कि जैसे ही स्कूल प्रबंधन ने जैसे ही स्कूल बिल्डिंग को इस तरह रेनोवेट कराया। इसका असर सीधा एडमिशन पर देखने को मिला। इससे आकर्षित होकर इस साल स्कूल में बच्चों की संख्या और नामांकन बढ़ गया।
गांव के इस स्कूल में कलरिंग के लिए बजट अलॉट हुआ था। इसे लेकर चर्चा हुई तो स्टॉफ की मीटिंग में एक टीचर ने पेंटिग बनाने का सुझाव दिया। वहीं एक अन्य टीचर ने ट्रेन जैसी पेंटिग बनाने का सुझाव दिया। सुझाव सभी को पंसद आया और इंटरनेट पर ट्रेन की तरह बिल्डिंग को पेंट किए जाने की तस्वीरें देखी गई। इसके बाद सालेड़ा के पेंटर संदीप गर्ग को स्कूल को ट्रेन की तरह पेंट करने को कहा गया।
2 महीने में तैयार कर दी स्कूल ट्रेन
पेंटर संदीप गर्ग ने स्कूल भवन पर कलर-पेंटिग का काम शुरू किया। सबसे पहले सभी कमरों को कलर करते हुए एक-एक कमरे पर ट्रेन के डिब्बों की पेंटिग बनानी शुरू की। इस तरह पहले क्लासरूम को ट्रेन के डिब्बे बनाए और सबसे अंत में प्रिंसिपल रूम को ट्रेन के इंजन के रूप में पेंट किया। इसकी एक दीवार पर ट्रेन इंजन के सामने वाला दृश्य पेंट किया गया। इसके बनने के बाद पूरा भवन एक ट्रेन की तरह दिखने लगा। दो महीने में यह स्कूल ट्रेन तैयार हो गई।
नामांकन भी बढ़ा और बच्चे भी हुए खुश
इस पेंटिंग का पॉजिटिव असर बच्चों के एडमिशन पर देखने को मिला। लॉकडाउन खुलने के बाद जैसे ही स्कूल शुरू हुए तो स्कूल को नए रूप में देखनकर बच्चे काफी खुश हुए। इसी का असर रहा कि लॉकडाउन के बावजूइ 40 से ज्यादा नए बच्चों ने एडमिशन लिया। प्राइमरी सेक्शन में जहां हर साल 20 से 25 बच्चों के एडमिशन होते थे। वहीं इस बार यह बढ़कर दोगुने 50 हो गए। फिलहाल इस स्कूल में अब 262 बच्चे पढ़ रहे हैं। साथ ही इससे बच्चों की अटेंडेंस भी बढ़ी। बच्चे हमेशा अब स्कूल पहुंचने के लिए तैयार रहते हैं।
बजट कम था, स्कूल स्टाफ ने जुटाया पैसा
स्कूल के प्रिंसिपल शांतिलाल बताते हैं कि स्कूल भवन के कलर के लिए एक सीमित बजट ही स्वीकृत होता है। लेकिन सभी स्टॉफ ने तय कर दिया था कि भवन को ट्रेन का रूप देना हैं तो स्कूल के बजट के साथ स्टॉफ के सभी सदस्यों ने मदद करते हुए पैसे दिए। जिससे पूरे स्कूल भवन का कलर हुआ और शानदार पेंटिंग बन सकी। अब स्कूल भवन को देखकर सभी का सुकुन मिलता है।