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71वां संविधान दिवस:कांग्रेस ने कार्यक्रम का बायकॉट किया; मोदी बोले- एक ही परिवार का पार्टी चलाते रहना लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा संकट

देश आज 71वां संविधान दिवस मना रहा है। इस मौके पर संसद के सेंट्रल हॉल में मुख्य कार्यक्रम हुआ। कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिना नाम लिए कांग्रेस पर हमला बोला। उन्होंने परिवारवाद पर निशाना साधते हुए कांग्रेस को ‘पार्टी फॉर द फैमिली, पार्टी बाय द फैमिली’ कहा। मोदी ने यह भी कहा कि संविधान बनाने वालों ने देशहित को सबसे ऊपर रखा, लेकिन समय के साथ नेशन फर्स्ट पर राजनीति का इतना असर हुआ कि देशहित पीछे छूट गया।

जिस कांग्रेस पर प्रधानमंत्री ने निशाना साधा, उसके साथ देश की 14 विपक्षी पार्टियों ने संविधान दिवस के कार्यक्रम का बहिष्कार किया है। इनमें शिव सेना, NCP, समाजवादी पार्टी, राजद, IUML और DMK शामिल हैं। दरअसल, कांग्रेस और तृणमूल ने पहले ही कार्यक्रम में शामिल होने से इनकार कर दिया था। इसके बाद कांग्रेस की अपील पर बाकी पार्टियों ने भी कार्यक्रम में न पहुंचने का ऐलान कर दिया।

मुंबई हमले में मारे गए लोगों को याद किया
कार्यक्रम की शुरुआत में मोदी ने कहा, ‘आज का दिन अंबेडकर, राजेंद्र प्रसाद जैसे दूरंदेशी महानुभावों को नमन करने का है। आज का दिन इस सदन को प्रणाम करने का है। आज 26/11 का भी दिन है। वो दुखद दिन, जब देश के दुश्मनों ने देश के भीतर आकर मुंबई में ऐसी आतंकवादी घटना को अंजाम दिया। भारत के संविधान में सूचित देश के सामान्य आदमी की रक्षा की जिम्मेदारी के तहत अनेक हमारे वीर जवानों ने उन आतंकवादियों से लोहा लेते-लेते अपने आपको समर्पित कर सर्वोच्च बलिदान किया। मैं आज उन सभी बलिदानियों को नमन करता हूं।’

राजनीति के चलते देशहित पीछे छूटा
मोदी ने कहा, ‘कभी हम सोचें कि हमें संविधान बनाने की जरूरत होती तो क्या होता। आजादी की लड़ाई, विभाजन की विभीषिका का बावजूद देशहित सबसे बड़ा है, हर एक के हृदय में यही मंत्र था संविधान बनाते वक्त। विविधिताओं से भरा देश, अनेक बोलियां, पंथ और राजे-रजवाड़े, इन सबके बावजूद संविधान के माध्यम से देश को एक बंधन में बांधकर देश को आगे बढ़ाना। आज के संदर्भ में देखें तो संविधान का एक पेज भी शायद हम पूरा कर पाते। क्योंकि, समय ने नेशन फर्स्ट पर राजनीति ने इतना प्रभाव पैदा कर दिया है कि देशहित पीछे छूट जाता है।’

अपना मूल्यांकन करने की जरूरत
PM ने कहा, ‘साथियों, हमारा संविधान सिर्फ अनेक धाराओं का संग्रह नहीं है। संविधान सहस्त्रों सालों की भारत की महान परंपरा, अखंड धारा की आधुनिक अभिव्यक्ति है। हमारे लिए लेटर एंड स्प्रिट में संविधान के प्रति समर्पण है। जब हम संवैधानिक व्यवस्था से जनप्रतिनिधि के रूप में ग्राम पंचायत से लेकर संसद तक दायित्व निभाते हैं, तो इसी भावना को याद रखना होगा। ऐसा करते वक्त संविधान की भावनाओं को कहां चोट पहुंच रही है, इसे भी नजरंदाज नहीं कर सकते हैं। इस संविधान दिवस को इसलिए भी मनाना चाहिए कि जो कुछ भी कर रहे हैं, वो संविधान के लिहाज से सही है या गलत। रास्ता सही है या गलत। हमें अपना मूल्यांकन करना चाहिए।

26 नंवबर को ही मनाना चाहिए था संविधान दिवस
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘अच्छा होता देश आजाद होने के बाद 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाने की परंपरा शुरू करनी चाहिए थी। इसकी वजह से हमारी पीढ़ियां जानती कि संविधान बना कैसे, किसने बनाया, क्यों बनाया, ये कहां ले जाता है, कैसे ले जाता इसी चर्चा होती हर साल। इसे हमने समाजिक दस्तावेज और जीवंत इकाई माना है। विविधता भरे देश में ये ताकत के रूप में अवसर के रूप में काम आता। कुछ लोग इससे चूक गए। अंबेडकर की 125वीं जयंती पर हमें लगा कि इससे बड़ा पवित्र अवसर क्या हो सकता है कि अंबेडकर ने जो पवित्र नजराना दिया है, उसे हम याद करते रहें।’

संसद में 26 नवंबर का जिक्र करने पर विरोध हुआ
मोदी ने कहा, ‘2015 में जब इसी सदन में मैं बोल रहा था, उस दिन भी विरोध हुआ था कि 26 नवंबर कहां से लाए, क्यों कर रहे हो, क्या जरूरत थी। भारत संवैधानिक लोकतांत्रिक परंपरा है। राजनीतिक दलों का अपना अहम महत्व है। राजनीतिक दल भी हमारी संविधान की भावनाओं को जन-जन तक पहुंचाने का माध्यम हैं। संविधान की भावना को भी चोट पहुंची है। संविधान की एक-एक धारा को भी चोट पहुंची है।’

मोदी बोले, “देश में कश्मीर से कन्याकुमारी तक जाइए। भारत ऐसे संकट की तरफ बढ़ रहा है, वो है पारिवारिक पार्टियां। राजनीतिक दल पार्टी फॉर द फैमिली, पार्टी बाई द फैमिली और अब आगे कहने की जरूरत नहीं लगती है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक राजनीतिक दलों को देखिए ये लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है। संविधान हमें जो कहता है, उसके विपरीत है। जब मैं कहता हूं कि पारिवारिक पार्टियां, मैं ये नहीं कहता कि परिवार से एक से अधिक लोग न आएं। योग्यता के आधार पर और जनता के आशीर्वाद से आएं। जो पार्टी पीढ़ीदर पीढ़ी एक ही परिवार चलाता रहे, वो लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा संकट होता है। सभी देशवासियों से आग्रह करूंगा कि देश में जागरूकता लाने की जरूरत है। वहां भी ऐसा देखा गया तो किसी ने बीड़ा उठाया कि इसे खत्म करेंगे। 30-40 साल लगे, लेकिन ऐसा हुआ। हमें भी चिंता की आवश्यकता है।’

मोदी बोले, “भ्रष्टाचार। क्या हमारा संविधान इसे आज्ञा देता है। कानून है, व्यवस्था है। समस्या तब होती है, जब भ्रष्टाचार के लिए किसी को न्यायपालिका ने सजा दे दी हो और राजनीति के कारण उनका महिमामंडन चलता रहे। सिद्ध हकीकत को भी राजनीतिक लाभ के लिए लोकलाज छोड़कर मर्यादा छोड़कर उनका साथ देते हैं। तब लोगों को लगता है कि भ्रष्टाचार की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है। उन्हें भी लगता है कि भ्रष्टाचार में चलना गलत नहीं है। भ्रष्टाचार के कारण गुनाह सिद्ध हुआ है तो सुधरने के लिए मौका दिया जाए, लेकिन सार्वजनिक जीवन में प्रतिष्ठा देने की प्रतिस्पर्धा चल रही है, वो नए लोगों को लूटने के रास्ते पर जाने के लिए प्रेरित करती है।’

मोदी बोले, “आजादी के 75 साल में देश जिस स्थिति से गुजरा, अंग्रेज कुचल रहे थे। हर हिंदुस्तानी के अधिकार के लिए लड़ना जरूरी था। महात्मा गांधी और तमाम लोग लड़ते रहे, ये सही था। गांधी ने अधिकारों के लिए लड़ते-लड़ते भी देश को कर्तव्य के लिए तैयार करने की कोशिश की। उन्होंने भारत के नागरिकों में उस बीज को बोने की कोशिश की थी। उन्होंने कहा था- सफाई करो, प्रौढ़ शिक्षा करो, नारी सम्मान, स्वदेशी जैसी चीजों के लिए गांधी देश को तैयार करते रहे। आजादी के बाद ये बीज वट वृक्ष बन जाने चाहिए थे। दुर्भाग्य से शासन व्यवस्था ऐसी बनी, जिसने अधिकार की बात करके ऐसा किया कि हम हैं तो ही अधिकार सुरक्षित रहेंगे। कर्तव्य पर बल दिया गया होता तो अधिकारों की रक्षा अपने आप होती। कर्तव्य से जिम्मेदारी का अहसास होता है और अधिकार से याचक का भाव पैदा होता है, समाज में कुंठित सोच पैदा होती है।’

मोदी बोले, “आज जरूरी है कि हम कर्तव्य के माध्यम से अधिकारों की रक्षा के रास्ते पर चलें। कर्तव्य वो पथ है जो अधिकार को सम्मान के साथ दूसरों को देता है। आज हमारे भीतर भी यही भाव जगे कि हम कर्तव्य पथ पर चलें, इसे जितनी ज्यादा मात्रा में निष्ठा से मानाएंगे, उससे सभी के अधिकारों की रक्षा होगी। जिन्होंने आजादी दिलाई, उनके सपनों को पूरा करने में हमें कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए। ये कार्यक्रम सरकार, दल या प्रधानमंत्री का नहीं। ये कार्यक्रम सदन का है, इस पवित्र जगह का है। स्पीकर और बाबा अंबेडकर की गरिमा है और हम इसे बनाए रखें।’

आजादी के अमृत महोत्सव के तहत हो रहा आयोजन
संसदीय मामलों के मंत्रालय की तरफ से जारी की गई रिलीज के मुताबिक, केंद्र सरकार संविधान दिवस को आजादी के अमृत महोत्सव के हिस्से के तौर पर मना रही है। संसद की तरफ से आयोजित किए गए कार्यक्रम को उप-राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू और लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला भी संबोधित कर रहे हैं।

उनके संबोधन के बाद राष्ट्रपति उनके साथ मिलकर संविधान की प्रस्तावना पढ़ेंगे। इसके बाद राष्ट्रपति कोविंद संविधान सभा की चर्चाओं की डिजिटल कॉपी, भारतीय संविधान की लिखित कॉपी का डिजिटल वर्जन और भारतीय संविधान की नई अपडेटेड कॉपी शामिल होगी, जिसमें अभी तक के सभी संशोधन शामिल किए जाएंगे।

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